कभी जब ख़ामोशी कानो में चुभने सी लगती है
लबों के कोने में एक गुफ्तगू की आरज़ू दबी रहती है
कभी जब खुश्क पत्तों की बुरबुराहट में कोई कहानी छुपी सी लगती है
लम्हों के साये में एक सदी की दास्ताँ गूंजती है........
वो पल है जब मेरी खुद से मुलाकात होती है
अनकहे से कुछ शब्द स्याही से निकलकर,
पन्ने की ओट लेकर, अपने वजूद का एहसास दिलाते हैं
एक मासूम सी ख्वाहिश दबे पाँव आती है; और किताब के कोने में सिमट के बैठ जाती है
शब्दों और ख्वाहिशों की पहचान करते करते
जब कुछ खोयी यादें जवां होती है.......
वो पल है जब मेरी खुद से मुलाकात होती है
बारिश की बूँदें जब बदन को छू कर रूह को भिगोने लगती हैं
ख्यालों के मकां में जब ख़्वाबों की धुप सजने लगती है
कभी जब एक सियाह से अक्स में रंग भरने लगते हैं
कहीं से हरी दूब की सौंधी सी खुशबू आने लगती है.......
वो पल है जब मेरी खुद से मुलाकात होती है