Wednesday, December 25, 2013

कई बार यूँ होता है.…

कई  बार, 
शोर तो बहुत होता है आस पास , पर सुनाई सिर्फ एक चुप्पी देती है 
चहलकदमी तो होती है चारों ओर , पर नज़र सिर्फ  उस एक  आहट पे होती है 

कई बार,
दिन हफ़्तों में और हफ्ते महीनों में तब्दील होते हैं,
पर सोच उस एक पल पे ही रुक जाती है, 
कहकशियों का माहौल तो  बना ही रहता है, 
पर जुबां बस उस अनकही पे ही अटक जाती है.

कई  बार,
आँखें मूँद लेते हैं;  नींद भी पूरी होती है; बस पलकों के पीछे इक सपना छिप के रह जाता है 
किस्से-कहानियों में जैसे कभी ज़िन्दगी ढूंढा करते थे, 
अब हर लम्हा जैसे कोई किस्सा ही बन कर रह जाता है … 

कई बार यूँ होता है.…
कि खुद का वजूद, खुद में मुकम्मल तो लगता है...
पर ज़हन में ये एहसास कहीं न कहीं दस्तक देता है 

कि इंसा अपना आधा-अधूरा, 
दूसरे  से ही पूरा करता है.…………