एक हैरानी सी होती है कभी
पिछले पतझड़ शाख टूटी थी जब
लगा था जैसे पेड़ मुरझा जाएगा अब
लगा था जैसे … छाओं का गिलाफ उतर गया है ,
और तपती ज़मीन की आदत डालनी पड़ेगी अब.…
दिन, महीने, मौसम, तब्दील हुए
उस पेड़ पर फूल तो ना आये कोई
पर जड़ मज़बूत है उस पेड़ की
बांधे रखा, सींचे रखा और तरबियत की उस पेड़ की
एक हैरानी सी होती है कभी,
पिछले पतझड़ लगा था जैसे कोई हरियाली नहीं फूटेगी अब
पर अब लगता है जैसे कुछ फलों की महक सी है
पतझड़ तो और भी आएंगे अभी,
ज़मीन में तपन तो अब भी बाकी है
लेकिन ये जड़ अपनी मिट्टी से कुछ ऐसी जुडी है अब
लगता है इस पेड़ ने कई सावन देखने है अभी