सवेरे नींद से जगाते हुए भी आँखों में जो नए सपने भर दे
जो नाश्ते में एक मीठा दुलार, एक खट्टी सी डांट और ढेर सारा गरम गरम प्यार परोसे,
वो माँ हैं
जिसकी सारी के पल्लू को कभी अपना तौलिया तो कभी पर्दा मान लिया
जिसको गोद में कभी अपना सर रखके चैन से सो गए,
तो कभी रुआंसा सा चेहरा चुप के आके छुपा लिया
जिसे कभी खाना खाने के लिए तंग किया
तो कभी अपने मनपसंद पकवान बनवाने की जिद्द की
वो माँ है
पापा से छुप के जिसे अपने दिल के सारे भेद बता दिए,
जिससे नज़रें चुराके भाई के साथ रोज़ एक नयी शरारत छेढ़ी
वो माँ है
वो जो घनी, तपती धुप में स्कूल के बहार शिकंजवी लिए खड़ी थी
वो जो कड़कती सर्दी में अपनी रजाई मुझपे दाल देती थी
वो जो बारिश में भीगने पर खूब डांटती
और फिर गरम गरम हलवा बना कर मेरी सर्दी दूर करती
वो माँ है
वो जो मुझे रोज़ दिखती तो नहीं,
पर हर पल मेरी हिचकियों में मुझे पुकारती है
वो जिसको परछाई हूँ मैं,
जिससे अलग तो हूँ , पर उसी में समाई हूँ मैं,
वो माँ है
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