कुछ पत्ते डाल से टूट के सूख गए हैं
आवाज़ तो नहीं सुनी थी कोई, बस एक हवा का झोंका आया था
कोई पास से गुज़रता है तो चिल्लाते हैं जोर से
हर आहट पे कान लगा के बैठे हैं अपने
अपनी नियति से जैसे चूक गए हैं
कुछ पत्ते डाल से टूट के सूख गए हैं
हवा के परों पे उड़ने का ख्वाब रखते थे
डाली से जुड़े थे तभी तो ऐसा मिजाज़ रखते थे
अब उस्सी डाल को इश्तियाक भरी नज़रों से देखते हैं
चिल्लाने की भी आवाज़ नहीं आती है अब, मूक हो गए हैं
कुछ पत्ते डाल से टूट के सूख गए हैं
अब तो हर झोंका जैसे आंधी सी दाब लेके आता है
डाली की हिमायत क्या गयी, पत्तों का वजूद ही सवाल बन जाता है
छाव कभी इनसे भी थी, ओस की बूँद इन पर भी मचल के गिरी थी
पर अब जैसे अपनी ही पहचान से बेरूख हो गए हैं
कुछ पत्ते डाल से टूट कर सूख गए हैं
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