ये बूँदें नहीं यादें बरस रही हैं
कुछ ख्वाब बरस रहे हैं,
जैसे कोई दास्तान झर रही है बादलों से .....
कभी तीरों से नोकदार और बेसब्र है
छम छम करके जैसे एक पल में सारी कहानी समेटना चाहती हो
कभी हलकी सी, ठंडी सी बौछार है
सब्र से जैसे हर ख्वाब को संभाल के रखना चाहती हो
ये बूँदें नहीं, कोई दास्तान झर रही है बादलों से ....
पहली बूँदें जो पड़ी
तो जमीं की तपन जज़्ब कर गयी, जैसे बेवजह की यादों को भाप करना चाहती हो
फिर लगातार गिरती ही रही
जैसे कुछ ताज़ा से ख़्वाबों को जमा करके रखना चाहती हो
कभी अपनी रफ़्तार से आँखों को धुंधला रही हैं
कभी एक धुला सा नज़ारा बन कर आँखों में ख्वाहिशें भर रही हों
ये बूँदें नहीं, कोई दास्तान झर रही है बादलों से ....
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