Wednesday, April 10, 2013

येही खेल खेला है कई बार


मुडके देखना और फिर वहीँ बैठ जाना,
सोचना, गौर करना उस बात पर , उस हालात पर 
आँखें मूंदकर किसी ख़याल की तस्वीर बनाना , और आँखें खोलते ही उस तस्वीर के टुकड़े समेटना  
उठना, एक कदम आगे बढ़ाना
फिर एक छूटे टुकड़े को उठाने के लिए झुकना और वहीँ बैठ जाना
येही खेल खेला है कई बार, उसी राह पर मुडके देखा है कई बार

रुका तो नहीं जाता, लम्बा सफ़र तय करना है,
लेकिन उसी गली से होकर निकलता है आगे का रास्ता
कभी मुंह दूसरी तरफ करके, तो कभी आँखें मींच के निकलना
कभी किसी पुरानी याद की आढ़ में छुप जाना, कभी किसी नयी याद के सपने बुनते हुए निकलना
बस उस गली के वजूद को किसी तरह बेमतलब सा बना देना
पर फिर एक तिरछी नज़र चुराके देख लेना
येही खेल खेला है कई बार, उसी राह पर मुडके देखा है कई बार

रास्ते और भी हैं , पिछले कुछ दिनों में कई नयी सडकें बनी हैं
लेकिन उस गली में जो पैरों के निशान हैं वो किसी और पे नहीं
कभी उन निशानों पे कूद के निकल जाना,
गम हो गए निशानों को ढूँढना तो कभी नए निशान बनाना
उस गली पे अपने ही घर को ढूँढना , और फिर एक आहट सुनते ही वहां से रवां हो जाना
येही खेल खेला है कई बार, उसी राह पर मुडके देखा है कई बार

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