Saturday, June 22, 2013

इक टुकड़ा चाँद मिल जाए कहीं

इक टुकड़ा चाँद का  मिल जाए कहीं
उसे डिबिया में संभाल के रख लूँ 
जब कभी अँधेरा डराए,
हलकी से चांदनी चुरा लूँ .....

जब लगे ख़्वाबों की तसवीरें,
कुछ धुंधली सी दिखने लगी हैं

जब लगे बादलों की परछाइयां ,
नज़र पे अपने गिलाफ से चढाने लगी हैं 

जब लगे पत्तों की एक कैनोपी-सी ,
आँगन की धुप को चुराने लगी है 

जब लगे अमावस की रात,
बिन बुलाये मेहमान -सी  आके ठहर ही गयी है 

जब लगे की अपने चाँद तक पहंचने में,
अभी एक उम्र का इंतज़ार और बाकी है 

तब,
हलकी सी चांदनी चुरा लूँ,
इक टुकड़ा चाँद  मिल जाए कहीं ....... 

Sunday, June 16, 2013

ये बूँदें नहीं, कोई दास्तान झर रही है बादलों से ....

ये बूँदें नहीं यादें बरस रही हैं 
कुछ ख्वाब बरस रहे हैं, 
जैसे कोई दास्तान झर रही है बादलों से .....

कभी तीरों से नोकदार और बेसब्र है 
छम छम करके जैसे एक पल में सारी कहानी समेटना चाहती हो 
कभी हलकी सी, ठंडी सी बौछार है 
सब्र से जैसे हर ख्वाब को संभाल के रखना  चाहती हो 
ये बूँदें नहीं, कोई दास्तान  झर रही है बादलों से ....

पहली बूँदें जो पड़ी 
तो जमीं की तपन जज़्ब कर गयी, जैसे बेवजह की यादों को भाप करना चाहती हो 
फिर लगातार गिरती ही रही 
जैसे कुछ ताज़ा से ख़्वाबों को जमा करके रखना चाहती हो 
कभी अपनी रफ़्तार से आँखों को धुंधला रही हैं 
कभी एक धुला सा नज़ारा बन कर आँखों में ख्वाहिशें भर रही हों  

ये बूँदें नहीं, कोई दास्तान झर रही है बादलों से ....