Saturday, June 22, 2013

इक टुकड़ा चाँद मिल जाए कहीं

इक टुकड़ा चाँद का  मिल जाए कहीं
उसे डिबिया में संभाल के रख लूँ 
जब कभी अँधेरा डराए,
हलकी से चांदनी चुरा लूँ .....

जब लगे ख़्वाबों की तसवीरें,
कुछ धुंधली सी दिखने लगी हैं

जब लगे बादलों की परछाइयां ,
नज़र पे अपने गिलाफ से चढाने लगी हैं 

जब लगे पत्तों की एक कैनोपी-सी ,
आँगन की धुप को चुराने लगी है 

जब लगे अमावस की रात,
बिन बुलाये मेहमान -सी  आके ठहर ही गयी है 

जब लगे की अपने चाँद तक पहंचने में,
अभी एक उम्र का इंतज़ार और बाकी है 

तब,
हलकी सी चांदनी चुरा लूँ,
इक टुकड़ा चाँद  मिल जाए कहीं ....... 

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