Wednesday, October 9, 2013

It is what it is !

Is silence a semblance of order; or clatter that of chaos,
Is routine an outcome of stability;
Is change always an unexpected surprise !

Beneath the silence, there could be whispers of confusion,
Simmering uncertainties, rumbling ruses, some stirring doubts and illusions...
The clatter could just be innocuous chatter,
A veritable bedlam of some trivial natter.

Routine might just be an escape from the unknown;
Monotony... just a facade for the tempest within...
Change could just be a deferred amendment; a long known divergence that was always meant !

Maybe when chaos itself blends into silence;
And when no more surprises unsettle the routine,
Its time to just let off and let go;

Time to tell yourself,
It is what is is .. and this is all there is to know !

Thursday, October 3, 2013

सब ही तो उड़ रहे हैं यहाँ …….

चलना, दौड़ना और  उड़ने की ख्वाइश रखना,
ना रुकना, ना मुड़ना, ना सांस भरने को थमना 
सही तो है, इसमें हैरानी क्या है !
बस एक उम्र ही तो मिली है। … 
अगर रुक ही गए तो फिर मनमानी क्या है !

मैं चली, दौड़ी, उड़ान भरने की पूरी तैयारी,
पर ये आसमां ज़रा अजनबी सा लगता है 
दौड़ते-दौड़ते शायद रस्ते का हिसाब भूल गयी मैं ,
ये नज़ारा नया तो है, पर कुछ पराया सा लगता है.…

सब उड़ तो रहे हैं यहाँ, सुनहरे पंख लगाए,
अपने ही इन्द्रधनुष के रंगों में रंगे ……
अपने ही बादलों में गुम से हैं सब, सब ही तो उड़ रहे हैं यहाँ ……. 

पर ये आसमां ज़रा अजनबी सा लगता है, 
हर बादल पे एक साइन्पोस्ट सा लगा है,
ऊँचाई का माप लिखा है हर बादल पे.……. 
ये नज़ारा कुछ पेचीदा सा लगता है !

सब उड़ तो रहे हैं यहाँ, दौड़ते-दौड़ते अब कूदने भी लगे हैं,
मैं तो सांस भरने को आई थी, लगता है उसका फैशन पूरा हो गया है अब,
सब ही तो उड़ रहे हैं यहाँ ………. 

हर बादल के ऊपर एक और बादल है, सुना है इस आसमां के आगे एक और जहाँ है,
पर धुप वहां  भी ऐसी ही खिलती है,
कहते हैं बारिश, बहार, पत्तझड़, सब इसी मिजाज़ में रहते हैं 
हाँ, सुना है वहां जगह बहुत खाली है,
अपनी ही आवाज़ की गूँज भी सुन सकते हैं …… 

पर मैं तो सांस भरने को आई थी यहाँ, 
कुछ पुरानी, कुछ नयी, कुछ अनसुनी आवाजें सुनने को आई थी ……. 
मैं उड़ने या कूदने नहीं, बैठके अपने आसमान को सहेजने, समेटने, सवारने आई थी यहाँ !

पर सब ही तो उड़ रहे हैं यहाँ ……….