Saturday, August 3, 2013

वक्त थमता तो नहीं,
गुज़र ही जाता है 
पर वक्त का एहसास तो है,
वो मेरे पास ही रह गया है 

उफनती लहरें रूकती तो नहीं, 
समेट लेती हैं सब अपने आँचल में 
कुछ रेत मैंने मुट्ठी में  भर ली थी
वो मेरे पास ही रह गयी है 

रात का डर भी नींद के साथ टूट ही जाता है 
सुबह के उजाले की दस्तक सुन भाग खड़ा होता है  
पलक के एक कोने में एक ख्वाब रखा था 
वो मेरे पास ही रह गया  है  

सुने सुनाये किस्से कहानियाँ का रंग 
बरसों की परतों में रखे फीका सा पड़  गया है 
एक जो  दास्ताँ अनकही सी बची थी 
बस, वो मेरे पास रह गयी है ...... 


No comments:

Post a Comment