Wednesday, February 8, 2012

ख़ामोशी का शोर



इस खामोशी के शोर में गुम सी गयी है मेरी खुद के आवाज़

वो पल जो गुज़र गए, कुछ अनकही, अनसुनी सी सिसक छोड़ गए हैं


ये पल जो यहाँ, अभी है, बहुत कुछ कहना चाहता है


लेकिन ख़ामोशी के शोर में इसकी आवाज़ दब सी गयी है !


इस ख़ामोशी के शोर में, मेरे कानों में कुछ लव्ज़ गूंजते हैं


होठों तक आते हैं,

 
इस शोर में वो अपनी आवाज़ ढूंढ़ रहे हैं


लेकिन ख़ामोशी का ऐसा कोलाहल मचा है चारों ओर


की मेरी खुद की आवाज़ गुम सी गयी है !



इस ख़ामोशी के शोर में


एक गर्जन भी है, एक रुदन भी

 
बहुत सी आवाजें जैसे अपना अस्तित्व खोज रही हैं


लेकिन ख़ामोशी का ऐसा कोलाहल मचा है चारों ओर

 
की शब्दों का मतलब, उनके मायने ही जैसे गुम से गए हैं !



गूंजती, सुबकती, सिसकती, हंसती, चिचियाती,


कई तरह की आवाजें है ये


लेकिन ख़ामोशी के शोर में, आज सब चुप हैं !


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