Saturday, July 21, 2012

खुद से मुलाकात

कभी जब ख़ामोशी कानो में चुभने सी लगती है
लबों के कोने में एक गुफ्तगू की आरज़ू दबी रहती है
कभी जब खुश्क पत्तों की बुरबुराहट में कोई कहानी छुपी सी  लगती है
लम्हों के साये  में एक सदी की दास्ताँ गूंजती है........ 
वो पल है जब मेरी खुद से मुलाकात होती है

अनकहे से कुछ शब्द  स्याही से निकलकर,
पन्ने की ओट लेकर, अपने वजूद का एहसास दिलाते हैं
एक मासूम  सी ख्वाहिश दबे पाँव आती है; और किताब के कोने में सिमट के बैठ जाती है 
शब्दों और ख्वाहिशों की पहचान करते करते 
जब कुछ  खोयी यादें जवां होती है.......
वो पल है जब मेरी खुद से मुलाकात होती है

बारिश की बूँदें जब बदन को छू कर रूह को भिगोने लगती हैं
ख्यालों के मकां में जब ख़्वाबों की धुप सजने लगती है
कभी जब एक सियाह से अक्स में रंग भरने लगते हैं
कहीं से हरी दूब की सौंधी सी खुशबू आने लगती है.......
वो पल है जब मेरी खुद से मुलाकात होती है 

1 comment:

  1. great,,, nice poem with excellent meaning and excellent lyrics,,,

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