Wednesday, September 26, 2012

वो सड़क, वो हवा, वो शोर

वो सड़क, जो पगडण्डी सी लगती है,
किसी की सुबह और शाम के बीच का पुल है,
किसी का घर है
कितनों की रोज़ी रोटी है,
थोड़ी संकरी, छोटी है
मेरे घर की ओर चली जाती है
वो सड़क, जो पगडण्डी सी लगती है

वो हवा, जो बस छू कर निकल जाती है,
कभी दिन भर की थकान मिटाने का मरहम है,
कभी तूफ़ान की दस्तक है
पसीने  में भिगोती गरम लू है कभी
ठिठुराती, कंपाती, सर्द सरसराहट है कभी
मेरे घर की खुशबू लेकर आती है
वो हवा, जो बस छू कर निकल जाती है

वो शोर, जो हर पल कानों में गूंजता है
कहीं ख़ुशी से नाचता झूमता कोलाहल है.
कहीं दर्द की आह है
कभी लगता है कितनी आवाज़ों में गुम एक साज़ है
कभी लगता है एक अनकहा सा राज़ है
मेरे घर से आती आवाजें ढूंढता है 
वो शोर, जो हर पल कानों में गूंजता है 

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